मुंबई में हुआ आतंकी हमला तो सबको याद ही होगा यह भारतीय संप्रभुता पर सबसे बड़े हमलों में से एक था जब 10 आतंकवादियों ने देश की वित्तीय राजधानी पर हमला किया था जिसके चलते हमारे देश के हीरोज़ ने लड़ाई करते समय अपनी जान भी गवाई और दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब भी दिया.
26/11 में हुए मुंबई हमले में कुछ ऐसे भी रियल हीरो थे, जो सामने नहीं आ पाए. ऐसे ही एक हीरो ने उस भयंकर काली रात को अकेले ही 157 लोगों की जान बचाई थी. 31 साल के अमेरिकी मरीन कैप्टन रवि धर्निधरका…जिन्होंने नवंबर और दिसंबर साल 2004 में फालुजा की खूनी लड़ाई लड़ी.
बता दें, रवि धर्निधरका बहुत सालों के बाद भारत आए…इतना ही नहीं, वह अपने चचेरे भाइयों के साथ बदहवर पार्क के पास छुट्टियां मना रहे थे. उनके चाचा और चचेरे भाइयों ने तो ताजमहल पैलेस की 20वीं मंज़िल पर बने लेबनानी रेस्तरां Souk में रात के खाने के लिए मिलने का फैसला किया था.

68 Hours Inside The Taj Hotel के मुताबिक़, जब कमांडो होटल पहुंचे तो वह असहज थे और उनका मन कुछ अच्छा ना होने का अहसास करवा रहा था. इतना ही नहीं, उस वक़्त एक साथ कई फ़ोन बजने लगे और बहुत जल्द उनके चचेरे भाई को कोलाबा में गोलीबारी के बारे में फ़ोन किया गया. रवि धर्निधरका को इस बात का अंदाज़ा लग चुका था कि कुछ बुरा होने वाला है क्यूंकि, होटल में प्रवेश करते समय मेटल डिटेक्टर की बीपिंग साउंड को वह भूल नहीं पा रहे थे.
पत्रकार कैथी स्कॉट-क्लार्क और एड्रियन लेवी द्वारा लिखी बुक The Siege के अनुसार, “होटल के मेन रूम में एंट्री के दौरान ही रवि को कुछ गलत होने का संकेत मिला था. मेटल डिटेक्टर में हुई चेकिंग के वक़्त एक बीप की आवाज़ आई, मगर किसी ने उसे नहीं रोका और किसी ने उसपर ध्यान नहीं दिया. फिर कुछ देर बाद रवि ने सोचा शायद वह बहुत थक चुके हैं, इसीलिए ऐसा सोच रहे हैं तब उन्होंने भी बात को इग्नोर कर दिया.

लेकिन जैसे ही उन्हें इस बात का पता चला कि होटल पर आतंकियों का हमला हुआ है, तब उन्होंने अपने कुछ अन्य एक्स कमांडो के साथ मिलकर इससे निपटने का फैसला किया. रवि समेत अन्य कमांडो यह समझ चुके थे कि वह किसी बड़ी मुसीबत में फंस चुके हैं इसीलिए, उन सब के सब 6 पूर्व कमांडो ने मिलकर एक योजना बनाई और होटल कर्मचारियों के साथ जांच के बाद कहा कि तत्काल खतरा Souk के कांच के दरवाजे थे… आतंकियों के एक भी ग्रेनेड हमले से भारी मात्रा में तबाही हो सकती है.
इसी के साथ दक्षिण अफ्रीका के दो अन्य लोगों ने Souk पर लोगों को सूचना दी और बताया कि वह कौन थे और यहाँ आए हर एक को सुरक्षित तौर पर बाहर ज़रूर निकालेंगे. इतना कहकर Wilmans अपने सहयोगियों के पास वापस चले गए और उन्होंने फैसला किया कि सभी को वहां से ट्रांसफर करना सबसे सुरक्षित होगा क्यूंकि, हॉल में एक मोटी लकड़ी का दरवाजा था.

पैलेस की छानबीन के समय रवि और दक्षिण अफ्रीका के निकोलस ने मिलकर दो फ़ायर सीढ़ी का इस्तेमाल करते हुए एक बाहर और दूसरा कॉन्फ्रेंस हॉल के अंदर से जो रास्ता था उसे मेज कुर्सियों और किसी भी चीज़ के ज़रिए बाहर से ब्लॉक कर दिया ताकि आतंकवादियों को आने मे दिक्कत हो सके.
उन्होंने सभी को रसोई से होते हुए एक सुरक्षित जगह पर पहुंचाया और रास्ते में मिलते गए हथियारों जैसे चाक़ू, छड़ी, इत्यादि को अपने पास रखते चले गए. यह हथियार आतंकवादियों को तो रोक नहीं सकते थे, मगर वह जानते कि आतंकवाद उन सब लोगों से विरोध की उम्मीद नहीं कर रहे.

इसी के साथ मुंबई ऑपरेशन की शुरुआत हुई, पर्दों को खींचा गया…रोशनी कम कर दी गई… दरवाजे भी तारों से बंद थे और लोगों को फ़ोन पर बात ना करने के साथ-साथ अपने ठिकाने का खुलासा नहीं करने के निर्देश दिय गए क्यूंकि, रवि जानते थे कि इस हॉल में हुई बात चीत का खामियाज़ा उन सभी 157 लोगों को जान देकर चुकाना पड़ सकता है.
Wilmans और रवि ने उसी सुरक्षित जगह के अंदर आग से बचने के लिए भी बैरिकेड लगाया और ताज के कुछ कर्मचारियों को वहां तैनात कर दिया ताकि, वह संकेत मिलने पर सीढ़ियों को खोलना शुरू करदे जिससे बाहर निकला जा सके.
आतंकवादियों ने ताज पैलेस के हेरिटेज टॉवरों में RDX सेट किया था, जिससे दो बड़े विस्फोट हुए. इसके प्रभाव को 20वीं मंज़िल पर महसूस किया गया था, जिससे लोग बहुत सहम गए थे. दक्षिण अफ्रीकियों ने सभी लोगों को पेपर बाटने शुरू किए, जिसमे उनसे उनके नाम और पता लिखने को कहा गया.
इस बीच रवि और अन्य लोगों ने भागने की व्यवस्था की मगर आतंकवादियों ने ताज के केंद्रीय गुंबद के नीचे 10 किलो RDX किलो को सेट किया… उन्होंने होटल की छठी मंजिल में भी आग लगा दी थी.

छठी मंजिल पर लगी आग ऊपर की तरफ फैलने लगी थी. रवि को लगा कि अगर आग होटल के पुराने विंग से फैलती है तो उन्हें निपटने के लिए समस्याओं का एक नया सेट तैयार करना होगा जिससे फायर एग्जिट को ब्लॉक करते हुए आग ऊपर की ओर फ़ैल जाएगी. अगर आग नहीं फैली तो शार्ट सर्किट ओर बिजली बंद होने जैसी परेशानी हो सकती थी.
इस बीच रवि समेत अन्य कमांडो को लगा कि यह उचित समय है बाहर निकलने का… इसीलिए उन्होंने भागने के मार्ग से बैरिकेड को हटाया, जिससे वह सभी बाहर सुरक्षित निकल सकें. रास्ता साफ़ होते ही उन्होंने फ़ोन बंद और जूते उतारने को कहा और जल्द से जल्द वहां से भागने की योजना तैयार की. लोगों ने धीरे-धीरे हॉल को खाली करना शुरू किया. इतना ही नहीं, रवि ने मौजूद एक बूढ़ी महिला को वेटर की मदद से अपनी बाहों में उठाकर सीढ़ियों को पार कराया.

रवि समेत अन्य साथियों ने पहले दक्षिण अफ्रीकी और ताज सिक्योरिटी को बाहर निकाला. उसके बाद महिलाओं और बच्चों को और उसके बाद सभी पुरषों को सुरक्षित बाहर निकाला गया. देखते ही देखते रवि धर्निधरका और उनके छह दक्षिण अफ्रीकी साथियों ने मिलकर 157 लोगों की जान बचाई और मौत की इस लड़ाई में जीत हासिल की.