देश की शीर्ष अदालत ने गुरुवार को अनुसूचित जाति व जनजाति पर आपत्तिजनक टिप्पणी मामले में सुनवाई की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर के अंदर यानी चारदीवारी के बीच अनुसूचित जाति और जनजाति को लेकर की गई किसी भी तरह की टिप्पणी अपराध की श्रेणी में नहीं आती है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई एससी एसटी कानून के तहत एक महिला का अपमान करने के आरोपों को खारिज करते हुए यह फैसला लिया गया हैं।

गौरतलब है कि इस मामले पर जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने फैसला सुनाया है। अपने फैसले के तहत कोर्ट ने अपना रुख साफ करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए सभी अपमान या धमकी एससी एसटी कानून के तहत अपराध नहीं होते। साथ ही कोर्ट ने इसका कारण बताते हुए कहा कि ऐसा तभी होगा जब व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से आता हो।
तीनों जजों की पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति के मान-सम्मान का अपमान अपराध की श्रेणी में तभी आता है, जब उसे सामाजिक तौर पर सबके सामने अपमानित किया गया हो। साथ ही जजों ने याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि इस मामले में लगाए गए अपमान और अपराध के आरोपों का कोई आधार नहीं है।

जजों ने इस मामले पर एक मत रखते हुए कहा कि घर की चार दीवारों में किए गए अपमान या आपत्तिजनक शब्दों को जाति धर्म के आधार पर मुद्दा बनाना गलत है। पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि याचिकाकर्ता हितेश वर्मा के खिलाफ अन्य अपराधों में दाखिल FIR पर संबंधित कोर्ट कानून के मुताबिक सुनवाई करते रहेंगे।
बता दे याचिकाकर्ता हितेश वर्मा ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने आरोपपत्र और सम्मान को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया था। इस दौरान पीठ ने अपने साल 2008 के फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि समाज में अपमान और किसी बंद जगह में की गई टिप्पणी के बीच में फर्क होता है।

उस दौरान भी कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के मामलों को अपमान की श्रेणी में तभी रखा जा सकता है, जब यह अपमान किसी घर की चारदीवारी के बाहर जैसे घर के लोन में, बालकनी में या घर की बाउंड्री में किया गया हो…जहां आते-जाते किसी ने इन शब्दों को सुना हो। अन्यथा घर की चारदीवारी में किए गए शब्दों के इस्तेमाल को अपमान या अपराध की श्रेणी में नहीं माना जा सकता हैं।
वही अब सुप्रीम कोर्ट ने भी साल 2008 के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा है कि चार दिवारी में किए गए अनुसूचित जाति व जनजाति के व्यक्ति पर अपमानजनक टिप्पणी अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं।